बांग्लादेश के एक छोटे से गांव से निकलकर 20 साल की संजीदा पढ़ने के लिए क़स्बे में आईं, तो उनकी मुलाक़ात ऐसे शख्स से हुई, जिसके साथ वह अपनी पूरी ज़िंदगी गुज़ारना चाहती थीं.
मगर एक समस्या थी. दरअसल संजीदा जिसके साथ ज़िंदगी बिताना चाहती थीं, वो एक लड़की थी, उन्हीं की तरह. और बांग्लादेश में समलैंगिक शादियों को मंज़ूरी नहीं है.
अब वह एक ख़ुशहाल ज़िंदगी जीने के बजाय वे अगवा करने के आपराधिक आरोप झेल रही हैं.
उनके स्कूल टीचर पिता ने अपने सबसे होशियार बच्चे को कॉलेज भेजने का फ़ैसला किया, ताकि वह परिवार के हालात बदल सकें.
जनवरी 2013 में संजीदा बांग्ला साहित्य पढ़ने गांव छोड़कर पिरोजपुर क़स्बे पहुँचीं, जिसकी पहचान थी रिक्शेवालों की घंटियां, नमाज़ और हिंदू मंदिरों से उठने वाली आवाज़ें.
संजीदा वहां आलू व्यापारी कृष्णकांत के घर किराए पर रहने लगी.
संजीदा की मेहनत और 'अच्छे चरित्र' से प्रभावित कृष्णकांत ने अपनी सबसे छोटी बेटी 16 साल की पूजा की पढ़ाई में मदद करने को कहा.
कृष्णकांत का परिवार संजीदा को पसंद करता था मगर जिस तरह वह जींस-टी शर्ट पहनती थीं, वो किसी पारंपरिक गांव से आई लड़की के लिहाज़ से थोड़ा अटपटा था.
अप्रैल 2013 में बांग्ला नववर्ष मन रहा था. संजीदा को लड़कियों को मेला घुमाने की ज़िम्मेदारी दी गई. जब वह मेले में जाने वाली थीं कि तभी वह पूजा के कमरे में गईं.
संजीदा याद करते हुए बताती हैं, "वह अपने बाल झाड़ रही थीं. उसने मुझे बिस्तर पर बैठने को कहा. उसकी पीठ मेरी तरफ़ थी."
"उसने हरे रंग का ब्लाउज़ और पेटीकोट पहन रखा था. ब्लाउज़ का फ़ीता लटक रहा था. मुझे उसी लम्हे में उससे प्यार हो गया."
संजीदा ने तब अपने मन की बात मन में ही रख ली. लेकिन बाद में उस दिन कुछ ऐसा हुआ, जिससे उन्हें यक़ीन हो गया कि पूजा भी उनके लिए वैसी ही भावनाएं रखती हैं.
संजीदा बताती हैं कि मेला घूमने के बाद पूजा ने उनसे पूछा, "क्या मैं आपके साथ खड़े होकर तस्वीर ले सकती हूँ?"
"मेरे हां कहने पर वो मेरे दायीं तरफ़ आकर खड़ी हो गई. जब तक मैं कुछ समझ पाती, उसने मुझे चूम लिया और अपने एक दोस्त से फ़ोटो लेने को कहने लगी."
"मेरे अंदर हलचल सी पैदा हो गई."
दोनों को पता था कि उनका रूढ़िवादी समाज उनके प्यार को मंज़ूर नहीं करेगा. इसलिए दोनों ने भागने की योजना बनाई.
तीन महीने बाद जुलाई की शुरुआत में दोनों ने रिक्शा किया और 17वीं सदी में बने शहर के मंदिर गए, जिसके चारों तरफ़ कमल का तालाब था. वहां काई जमे शिव मंदिर में उन्होंने एक दूसरे को फूलों की माला पहनाई और भगवान को साक्षी बनाया. संजीदा ने पूजा की मांग में सिंदूर भर दिया, जो हिंदू महिलाओं में शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता है.
मंदिर के एक पुजारी के अनुसार अगर ऐसी शादी दो विपरीत लिंगों के लोगों में होती, तो बेशक हिंदू धर्म की परंपरा की ब्राह्मो मान्यता के मुताबिक़ मान्य होती.
भगवान के सामने शादी करने के बाद संजीदा और पूजा दोनों कूचा नदी पहुँचीं और बारीसाल के लिए नाव ली, जहां उन्हें उम्मीद थी कि उनके परिवारों का नज़ला उन पर नहीं गिरेगा.
दोनों को पता था कि उन्होंने सभी सांस्कृतिक सीमाएं तोड़ दी हैं.
पूजा के पिता को कहीं से पता चला कि दोनों को मोटर साइकिल से बारीसाल की तरफ़ जाते देखा गया है. तो क़स्बे में खोजबीन करने के बाद वो पुलिस के पास पहुँचे और कहा - ''सर मेरी बेटी को अगवा कर लिया गया है.''
हालांकि जब तक पुलिस खोजबीन शुरू करती, तब तक दोनों लड़कियां नदी पार कर बारीसाल पहुँच चुकी थीं. वहां उन्होंने एक परिवार में कमरा किराए पर ले लिया.
संजीदा कहती हैं, "हमने वहां अपना शादीशुदा जीवन शुरू किया और क़रीब डेढ़ हफ़्ते तक सबसे अच्छा वक़्त बिताया."
इस घर को 'लव हाउस' कहने वाली संजीदा के मुस्लिम मकान मालिक बड़े प्यार से अपने इन दोनों किराएदारों को याद करते हैं.
वे कहते हैं, "हमारे मज़हब में ऐसा रिश्ता नहीं होता और न इसकी इजाज़त है. मगर निजी तौर पर मुझे लगा कि यह एक ज़बर्दस्त प्रेम था. मैंने इससे पहले कभी ऐसा नहीं सुना था पर जब मैंने इन दोनों के बीच इतना गहरा प्यार देखा, तो मुझे मानना पड़ा."
मगर पूजा के घर वालों को यह रिश्ता मंज़ूर नहीं था. उनके लिए प्यार की यह कहानी झूठी थी.
पूजा की बहन शिप्रा ज़ोर देकर बताती हैं, "उसे चाय में कुछ मिलाकर दिया गया था, जिससे वह बेहोश हो गई."
जब संजीदा और पूजा को पता चला कि उन्हें पुलिस खोज रही है, तो वो फिर वहां से भाग निकलीं और इस बार राजधानी ढाका पहुँचीं, जहां उन्हें शहर के उत्तरी इलाक़े में फ़्लैटों के बीच एक कमरा मिला.
जुलाई 2013 के अंत में पिरोजपुर से उनके भागने के क़रीब तीन हफ़्ते बाद बांग्लादेश की रैपिड एक्शन बटालियन के पुलिसकर्मी उनके दरवाज़े पर थे. संजीदा को गिरफ़्तार कर तुरंत पिरोजपुर थाने को सौंप दिया गया. पूजा को उनके परिवार के पास भेज दिया गया.
बांग्लादेश के एलजीबीटी समूहों की संयुक्त इकाई बंधु सोशल वेलफ़ेयर सोसायटी की निदेशक फ़रीदा बेग़म ने बीबीसी को बताया, "हिंदू-मुसलमान पृष्ठभूमि को तो छोड़िए, चूंकि दो औरतों के शादीशुदा होने का दावा करने की कोई मिसाल पहले से नहीं थी, तो पुलिस और यहां तक कि संजीदा के वकील को भी नहीं पता था कि इससे कैसे निपटें."
अगर दोनों मर्द होते तो उन पर 1850 के औपनिवेशिक क़ानून धारा-377 के तहत क़ानूनी कार्रवाई हो सकती थी, जिसमें 'क़ुदरत के ख़िलाफ़ जिस्मानी संभोग को अपराध' घोषित किया गया है.
लेकिन यह क़ानून औरतों पर लागू नहीं होता. इसलिए संजीदा पर नाबालिग़ के अपहरण के आरोप लगे, जिसमें लंबे वक़्त तक जेल में रहना पड़ सकता है.
अगर संजीदा पुरुष होती तो जोड़े को शादीशुदा माना जाता और बांग्लादेश में पूजा का नाबालिग़ होना मायने नहीं रखता.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ बांग्लादेश में हर पांच में दो लड़कियों की शादी 18 की वैध उम्र से पहले हो जाती है.
संजीदा की भी हाईस्कूल से पहले ही एक उम्रदराज़ शख़्स से शादी करा दी गई थी, लेकिन उन्होंने उसके साथ जाने के बजाय उसे तलाक़ दे दिया था.
शायद इससे संजीदा को अपने परिवार और उस संस्कृति के प्रति बाग़ी बनने का मौक़ा मिला और वह खुलकर सामने आईं.
ज़मानत पर रिहा होने से पहले संजीदा ढाई महीने तक जेल में रहीं.
जेल में उन्हें जो यातनाएं झेलनी पड़ीं उनमें सबसे शर्मनाक थी शरीर के अंतरंग हिस्सों की जांच.
वह बताती हैं, "मैं औरत हूँ या मर्द, यह जानने के लिए महिला पुलिस अधिकारी मेरे पास भेजी गईं. उन्होंने मुझे हर जगह छूना शुरू कर दिया."
"वह मेरी ज़िंदगी का सबसे शर्मनाक लम्हा था. इतना शर्मनाक कि मैं चाहती थी कि ख़ुदकुशी कर लूँ. मेरे साथ ऐसा तीन बार हुआ. हर कोई मुझे चिढ़ाता था. कुछ क़ैदी कहती थीं कि तुम्हारा चेहरा इतना मासूम है, दिमाग़ इतना गंदा क्यों है?"
मगर बांग्लादेशी मीडिया ने दोनों महिलाओं के प्रति सकारात्मक रुख अपनाया, जिसे उन्होंने एक साहसी और रोमेंटिक प्रेम कहानी क़रार दिया.
पूजा ने पत्रकारों से कहा, "अगर एक लड़का एक लड़की से प्यार कर सकता है तो एक लड़की दूसरी लड़की से प्यार क्यों नहीं कर सकती? अगर वो प्यार करती हैं तो क्यों एक औरत, एक औरत से शादी नहीं कर सकती?"
उन्होंने बताया कि वह और संजीदा ढाका इसलिए गईं थीं ताकि अपना घर बसा सकें. हालांकि उनका परिवार इससे इनकार करता है कि पूजा ने कभी ऐसा कहा था.
संजीदा मुझे दूरदराज़ के एक गांव में ले गईं, जहां वह पली-बढ़ी थीं और जहां उनका मुस्लिम परिवार आज भी रहता है. उस घर में बिजली-पानी नहीं था. उनकी मां ज़मीन पर बैठी थीं और पान चबाते हुए उन्होंने कहा कि उनकी छोटी बेटी उनके दूसरे तीन बच्चों से अलग थी.
वह बताती हैं, "जब संजीदा छोटी थी तो एक बार बीमार पड़ी थी. उस पर जिन्न आ गया था. हम उसे कई धार्मिक लोगों के पास इलाज के लिए ले गए. उन लोगों ने ताबीज़ पहनने को दिया."
संजीदा के पिता ने अपनी बेटी के सेक्स रूझान के बारे में बात करने से इंकार कर दिया. वो सिर्फ उसकी डिग्री नहीं पूरा करने के बारे में बात करते रहे. उन्होंने कहा कि उनकी बेटी ने उन्हें नीचा दिखाया है.
उनका चचेरा भाई एक हाफिज़ है. उनका कहना था, "संजीदा का कहना है कि वह दूसरी औरत को प्यार करती है. मुझे बताएं कि दो औरतें बिस्तर में क्या कर सकती हैं?"
संजीदा के चाचा ने कहा, "उसके अंदर कोई जिन्न या ऐसा कुछ नहीं बल्कि उसके अंदर मर्द हार्मोन की समस्या है."
इस पर संजीदा अपने चाचा पर बिफ़र पड़ती हैं और चिल्लाने लगती हैं.
"मैं मर्द नहीं हूँ, न कभी होऊंगी. मैं 100 फ़ीसदी औरत हूँ. अगर मेरा देश कभी समलैंगिक शादियों को क़ानूनी दर्जा देगा, तो मैं सबसे पहले इसके लिए आगे आऊंगी."
23 साल की इस बांग्लादेशी औरत ने खुलेआम सारी परंपराओं को धता बताते हुए अपनी सेक्सुअलिटी ज़ाहिर कर दी है.
बांग्लादेश शुद्धतावादी इस्लाम के फैलने और फ़तवे पर आधारित हिंसा और ब्लॉगरों की हत्या से पहले ज़्यादा सहिष्णु देश माना जाता था. देश के ग्रामीण इलाक़ों में 'जियो और जीने दो' का दर्शन काम करता था. ये शायद संजीदा और पूजा के पूर्वज समझते थे और शायद यही बात संजीदा के छोटे भाई बायज़िद में दिखती है.
हालांकि वह कहते हैं कि पहली बार तो अपनी बहन की इस तरह की सेक्सुएलिटी को कुबूल करना उनके लिए काफ़ी मुश्किल था. अब ''मैं इसे मान चुका हूँ और हमारी मां भी.. हमारे पिता को भी इससे ऐतराज़ नहीं - उनका अपनी बेटी के लिए प्यार उनके रूढ़िवादी विचारों से ज़्यादा मज़बूत है.''
वह कहते हैं, ''मैंने ऐसा मामला कभी नहीं देखा है लेकिन इंटरनेट पर इस बारे में पढ़ा है कि मेरी बहन जैसे और भी लोग हैं और वो केवल बांग्लादेश में नहीं हैं.''
दिसंबर में हज़ारों लोगों ने विश्व मानवाधिकार दिवस वाले दिन ढाका में रैली की. इनमें कई लिंगभेद के ख़िलाफ़ और समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता भी थे, जिन्होंने संजीदा को हीरो की तरह पेश किया. वो लैंगिक अल्पसंख्यकों को समान अधिकार दिलाना चाहते हैं और धारा 377 में बदलाव चाहते हैं.
किसने सोचा था कि एक छोटी सी लड़की अपनी ईमानदारी और अपने साहस की वजह से इतने सारे लोगों को प्रेरणा देगी? संजीदा बांग्लादेश में ख़ुद ब ख़ुद समलैंगिक अधिकारों की नेता बन गई हैं.
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वह कहती हैं, ''मैं नहीं जानती थी कि जो मैं महसूस करती हूं उसे समलैंगिक कहते हैं. मैंने ये लफ़्ज़ तब तक नहीं सुना था जब तक कि समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने मुझसे जेल में मुलाक़ात नहीं की थी.''
पूजा से मिलने की संजीदा की सारी कोशिशें पूजा के परिवार वालों ने नाकाम कर दीं.
आख़िरी उम्मीद भी तब टूट गई जब संजीदा ने सुना कि पूजा की उनके ही समुदाय के एक पुलिसवाले से शादी कर दी गई है. आख़िर संजीदा की प्रेम कहानी नाकामी में ख़त्म हुई, मगर वह फिर आरिफ़़ा नाम की एक दूसरी महिला से प्यार करने लगीं.
उनका सफ़र जारी है और वह अब बीए की पढ़ाई पूरी करती हुईं एक मानवाधिकार संगठन के लिए काम कर रही हैं.
उन्हें इंतज़ार है उस दिन का, जब उनके ख़िलाफ़ चल रहा यह मुक़दमा ख़त्म होगा.
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