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आलिंगन और उसकी विधियां , संभोग से पहले आलिंगन क्यों जरूरी

आलिंगन का अर्थ है कामोत्तेजित करना, एक-दूसरे की त्वचा में घर्षण उत्पन्न करना, आपस में लिपटना, सहलाना, मसलना, भींचना, चुम्बन करना आदि। बिना कामोत्तेजित हुए सेक्स करना शारीरिक व मानसिक रोगों को जन्म देना होता है।
इसलिए सेक्स का वास्तविक आनन्द प्राप्त करने के लिए शास्त्रों में संभोग के आठ चरण निर्धारित किए गए हैं। यह चरण स्त्री की कामाग्नि को जाग्रत करने से लेकर उसे सेक्स के अन्तिम चरण सीमा पर पहुंचाने के लिए आवश्यक है।
संभोग से पहले आलिंगन क्यों जरूरी-

आलिंगन करने से स्त्री पूरी तरह कामोत्तेजित हो जाती है। जिससे उसकी योनि द्रवित (योनि से सफेद रंग का द्रव्य निकलना जिससे योनि गीली) हो जाती है और लिंग आसानी से उसमें प्रवेश कर जाता है। इस प्रकार संभोग करने से स्त्री-पुरुष दोनों को पूर्ण संतुष्टि प्राप्त होती है। अगर स्त्री द्रवित नहीं हुई और पुरुष ने शुष्क योनि में शिश्न को प्रविष्ट करने की कोशिश कि या बलपूर्वक सहवास करने की कोशिश की तो स्त्री दर्द से व्याकुल हो जाएगी और संभोग का आनंद पीड़ा में परिवर्तित हो जाएगा। इसलिए संभोग से पहले आलिंगन क्रिया करना बहुत जरूरी होता है।

संभोग के आठ चरण –

आलिंगन।
चुम्बन।
नख क्रीड़ा।
दन्त रोमांच।
संवेशन (रती-क्रीड़ा के आसन)।
सीस्कृत (संभोग काल में कामुक ध्वनियां)।
पुरुषापित (नारी द्वारा पुरुष की भूमिका)।
औपरिष्टिक (मुख द्वारा यौन-क्रीड़ा)।
आलिंगन-

समागम का प्रथम चरण आलिंगन है। स्त्री-पुरुष का आपस में लिपट जाना, एक-दूसरे की बांहों में लिपटकर समा जाने का प्रयास करना ही आलिंगन है। वास्तव में रति-क्रीड़ा की शुरुआत आलिंगन से ही होती है।

वैसे तो आलिंगन के 8 भेद किए हैं मगर इन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है-

1- अविवाहित आलिंगन (Per-marital embraces)

2- विवाहित आलिंगन (Per marital embraces)

अविवाहित आलिंगन-

इस प्रकार के आलिंगन का प्रयोग वे नर-नारी करते हैं जो एक-दूसरे से परिचित हो चुके होते हैं और जिनके हृदय में यौन प्रेम के बीज फूट चुके हों। इसके चार भेद किए गए हैं-

(1) स्पृष्टक- इसमें एक दूसरे के शरीर का केवल स्पर्श किया जाता है। इसका प्रयोग अकेले न मिल पाने के कारण उपयुक्त अवसर मिलने पर किया जाता है। प्रेमी किसी बहाने से प्रेमिका के शरीर को हल्के-से छूते हुए आगे बढ़ जाता है। प्रेमिका भी इसी बहाने अपने प्रेमी के शरीर को छूते हुए जल्दी से आगे बढ़ जाती है। यह सब कुछ इतने आकस्मिक ढ़ंग से सम्पन्न हो जाता है कि किसी को इसका कोई आभास तक नहीं होने पाता। इस थोड़ी सी छुअन (स्पर्श) से दोनों के मन और शरीर में एक अद्भुत सनसनी प्रवाहित होने लगती है।

(2) विद्धक- इस आलिंगन की शुरुआत चतुर प्रेमिका खुद स्वयं करती है। अपने प्रेमी को किसी एकांत या निरापद स्थान में बैठे हुए अथवा खड़ा देखकर चुपचाप उसके पास पहुंच जाती है। प्रेमी अगर बैठा हुआ है तो नीचे रखी हुई किसी वस्तु को उठाने के बहाने वह इस प्रकार झुकती है कि उसके स्तन प्रेमी के शरीर को होले (धीरे) से स्पर्श करें। यदि प्रेमी खड़ा हुआ है तो प्रेमिका पीछे से जाकर उसे अपनी बांहों में कस लेती है। उसके पुष्ट स्तनों के स्पर्श से प्रेमी रोमांचित हो उठता है। इस आलिंगन का प्रयोग ऐसी प्रेमिकाओं के लिए उपयुक्त होता जिसके हृदय में प्रेम अंकुरित तो हो चुका है परन्तु पल्लवित नहीं हो पाया है। वैसे वे एक-दूसरे की ओर आकर्षित एवं सम्मोहित हो चुके होते हैं।

(3) पीड़ितक- इस आलिंगन का प्रयोग आपस में गहरा प्रेम एवं अनुराग बढ़ जाने पर किया जाता है। वास्तव में यह आलिंगन उद्धृष्टक का ही विकसित रूप है। इसमें पुरुष स्त्री को दीवार अथवा किसी वस्तु के सहारे खड़ा कर आलिंगनबद्ध कर लेता है और पूरी शक्ति का प्रयोग कर अपने शरीर से उसके कामुक (उतेजक) अंगों को घर्षण करता है। इस आलिंगन का प्रयोग प्रेमिका के द्वारा भी किया जा सकता है। यह आलिंगन इस बात का स्पष्ट संकेत होता है कि स्त्री-पुरुष दोनों मानसिक रूप से सेक्स यानि संभोग के लिए आतुर एवं बेचैन हैं।

स्त्री-पुरुष का प्रेम जब परिपक्व हो चुका होता है तब दोनों लज्जा एवं संकोच से मुक्त होकर संभोग के आनंद से परिचित हो चुके होते हैं। उस समय संभोग से पहले अथवा बाद में प्रयोग होने वाले आलिंगनों को चार भेदों में बांटा गया है।

1- लतावेष्टिक(लता के समान लिपट जाना)- इसमें अपने सामने खड़े हुए प्रेमी को प्रेमिका आलिंगनबद्ध करके लता के समान अर्थात बेल की तरह लिपट जाती है और कामोद्दीप्त होकर प्रेमी के मुख तथा होठों का बार-बार चुम्बन करती है। साथ ही अपने प्रेमी को मजबूती से बांहों में जकड़कर अपने स्तनों से प्रेमी के सीने को भरपूर दबाव देकर प्रेमी को भी उत्तेजित कर देती है।

2- वृक्षाधिरूढ़क(वृक्ष पर चढ़ने के समान)- इसमें स्त्री अपना एक पैर पुरुष के पैर पर रखकर दूसरे पैर से उसकी जांघ तथा हाथों से कमर को जकड़ लेती है। दोनों की जांघे आपस में सट जाने के कारण शिश्न व योनि पर दबाव पड़ता है और दोनों की कामाग्नि भड़क उठती है। स्त्री आहें भरते हुए पुरुवृक्ष पर चढ़ने के समान क्रिया करती है।

3- तिलतण्डुलक- संभोग से पहले कामोद्दीपन (कामोत्तेजना) के लिए यह आलिंगन बिस्तर पर लेटकर किया जाता है। इसमें स्त्री ज्यादातर पुरुष के दाईं और लेटती है। दोनों करवट लेकर एक-दूसरे से चिपक जाते हैं। मुख से मुख, होठों से होठ, छाती से छाती, जांघों से जांघे, पैर से पैर तथा योनि से लिंग एकदम चिपक जाते हैं। इससे ऐसी कामोत्तेजना उत्पन्न होती है जिसमें संभोग किए बिना संतुष्टि प्राप्त नहीं होती है।

4- क्षीरमलक- इस आलिंगन में स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे में समा जाने को बेचैन हो जाते हैं। इस आलिंगन का प्रयोग अक्सर दो प्रकार से होता है।

पहली क्रिया में स्त्री व पुरुष दोनों नग्न अवस्था में होते हैं। स्त्री पुरुष की गोद में बैठ कर उसे बाहों में जकड़ लेती है। स्त्री के पुष्ट स्तनों के दबाव से पुरुष सिहर उठता है।
दूसरी क्रिया में पुरुष नीचे लेट जाता है और स्त्री उसके ऊपर इस प्रकार लेटती है कि दोनों के शरीर आपस में सट जाते हैं इससे यौनांगो में दबाव पड़ता है और कामोत्तेजना तीव्र रूप से उत्पन्न होती है जो संभोग करने के बाद ही समाप्त होती है।
इन आलिंगनों के अलावा कुछ और लोगों ने अन्य विधियों का उल्लेख किया है-


1- उरूपग्हन- इस आलिंगन का प्रयोग स्त्री और पुरुष करवट के बल लेटकर करते हैं। इसमें पुरुष अपनी जांघों के बीच स्त्री की जांघों को बारी-बारी से बलपूर्वक दबाकर रोमांचित करता है। यही क्रिया स्त्री भी दोहराती है।

2- जघनोपगहन- यह प्रयोग पहले स्त्री द्वारा ही शुरु किया जाता है। इस आलिंगन में पुरुष नीचे लेट जाता है और स्त्री ऊपर से लेटकर अपनी जांघों तथा कमर से प्रेमी की जांघों तथा कमर को इस प्रकार से मिलाती है कि योनि से लिंग पर दबाव पड़ता है और दोनों ही कामोत्तेजित होकर चुम्बन क्रिया शुरू कर देते हैं।


3- स्तनलिंगन- यह आलिंगन भी स्त्री द्वारा ही किया जाता है। इसमें स्त्री खड़ी होकर, बैठकर, करवट से लेटकर या पुरुष के ऊपर लेटकर अपने पुष्ट स्तनों से उसकी छाती पर बार-बार दबाव देती है।

4- ललाटिका- इसमें भी स्त्री ही पहले शुरुआत करती है। पुरुष चित्त लेट जाता है। अब स्त्री उसके ऊपर इस प्रकार लेटती है कि माथा, आंखे तथा होंठ आपस में जुड़ जाते हैं। यह आलिंगन बहुत ही भावनात्मक एवं रागात्मक होता है। इसके प्रयोग से रोमांचयुक्त आनंद प्राप्त होता है।

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जोश-ए-जवानी

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