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सेक्स संबंधी बातों पर खुलकर करें बात, अच्छी है ये वजहें

शादी के अलावा लड़के और लड़की के रिश्तों को भारत में आसान नहीं माना जाता। हाँ, पहले की तुलना में अब प्रेम सम्बन्ध और विवाहपूर्व साथ रहने की बातें अब आम हो गयी हैं। लेकिन भारत का समाज ऐसे संबंधों के लिए मुश्किल ही साबित होता है।हमारे देश में प्रेम के सार्वजानिक प्रदर्शन को गलत माना जाता है। हाथ पकड़ने पर ही लोग अजीब शक्ल बना लेते हैं, तो इसके आगे की बात करने का सवाल ही नहीं उठता।
यह थोड़ा अजीब है, नहीं? चूंकि दुनिया के किसी भी देश की तुलना में हम सबसे ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं, इसलिए मुझे लगता है की बहुत से भारतीय सेक्स को बेहद पसंद करते होंगे।

फिर भी इस विषय पर हम दुनिया के सबसे दखियानुसी लोग हैं। और अजीब बात यह है की हमें अपनी दखियानुसी पर गर्व है।
नहीं आसान होता शादी का रिश्ताजब तक मध्य एशियाई लोगों ने हम पर आक्रमण नहीं किया था, हमारी महिलाएं तन के ज़्यादा ढकने में विश्वास नहीं करती थी। और अभी कामसूत्र नाम की किताब के बारे में तो बात भी शुरू नहीं कर रहा।

तो आखिर अब क्या हो गया? नैतिकता और सभ्यता के नाम पर हमने एक बनावटी समाज बना लिया है। वो समाज जो अब विस्फूट की कगार पर खड़ा है। मेरे पास ये साबित करने का कोई तरीका तो नहीं, लेकिन इतिहास गवाह है। 

विस्फूट के लिए तैयार  

दिल्ली में लड़कियां और प्रेमी युगल अँधेरे से आतंकित रहते है। महफूज़ जगह की कमी, यातायात, कानून और व्यवस्था की कमी के कारण वह्शी पुरुष अक्सर ये सुनिश्चित करते हैं की लड़कियां देर रात बहार निकलने में सुरक्षित महसूस ना करें।
इन भेड़ियों से बचने के लिए उन्हें घर में दुबक के रहना पड़ता है।

इसके फलस्वरूप लड़कों को काफी कुछ करने का मौका मिलता है, क्यूंकि उन्हें दिन या रात सोचने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मुझे तो दिल्ली के सुनसान रिहाय्शियों और बाथरूम के बारे में पता है जहाँ वो सब होता है जो कहीं और होना चाहिए।


बाथरूम में होती है हरकतें   

तो अपने मुद्दे पर लौटते हुए मैं आपको एक कल्पना बताता हूँ। क्या आपको नहीं लगता की हमारा समाज अधिक प्रसन्न समाज होता यदि युवा लोगों के लिए ऐसे स्थान होते जहाँ उन्हें किसी से डरना न पडे?

जी नहीं, मैं सेक्स पार्क की बात नहीं कर रहा, लेकिन शायद ऐसी पार्किंग जहाँ पुलिस वालो के आने पर रोक हो।

कुछ लोगों को मेरी इस बात से आपति होगी जो कहेंगे की ऐसे स्थान हिंसा का केंद्र बन जायेंगे, लेकिन मेरा मौलिक अच्छापन और आत्मनियंत्रण से भरोसा उठा नहीं है।

हमें उस चीज़ की फ़िक्र होती है जिस से हम प्यार करते हैं। और वो लोग जो अपनी बेटियों के बारे में चिंतित है, तो मैं आपको विश्वास दिला दूँ की ये शायद उन स्थानों से ज़्यादा सुरक्षित होगा जहाँ शायद आपकी बेटी अभी जाती हो। अक्सर ऐसे स्थानों से ही सामूहिक बलात्कारों की खबरें आती हैं।


मतलब की बात 

मैं यह बिलकुल नहीं कह रहा की सेक्स एक सार्वजानिक चीज़ बन जाए। लेकिन शायद हम इस पर इतना बवाल ना खड़ा करें तो लोग इस सम्बन्ध में ज़्यादा ज़िम्मेदारी से काम लें। क्यूंकि सेक्स को अब गुप्त न रखने का समय आ चूका है।

हम लोगों को प्यार और सम्भोग करने से नहीं रोक सकते। लेकिन इसे सुरक्षित बनाने का प्रयास तो अवश्य कर सकते हैं।

तो मेरे प्यारे समाज सेवक और मीडिया वाले लोगों से मेरी पठन है की अपने ऊँचे नैतिक नियमों को थोड़ी ढील दो, अश्लील चित्रों से भरे अपने फ़ोन फ़ेंक कर समाज को सुरक्षित बनाने की और कदम बढ़ाये। और इसके लिए पहले से ही धन्यवाद।
 
 

जोश-ए-जवानी

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