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स्त्रियां कैसे करें संभोग में पहल

कामशास्‍त्रियों का मत है कि संभोग के समय नारी को निश्‍चेष्‍ट पड़े रहने की अपेक्षा उन्‍हें भी समान रूप से इसमें हिस्‍सा लेना चाहिए। जब नारी के शरीर में वासना जगती हो तो वह अपने पुरुष साथी से प्रेम की शुरुआत करे न कि प्रमी द्वारा इसके शुरु होने की अपेक्षा करे।
पति-पत्‍नी दोनों के बीच प्रेम में जब खुलापन आ जाता है तो उनके रिश्‍ते और मजबूत ही होते हैं, लेकिन जब इनमें दुराव-छिपाव, संशय या संकोच होता है तो दोनों के बीच रिश्‍तों में गांठ आ सकती है। ऐसे रिश्‍तों में ही अविश्‍वास पनपता है। इसलिए अच्‍छा यह है कि दोनों में से जिसकी भी इच्‍छा प्रेम में पहल की हो, वो इसकी शुरुआत करे। आपसी प्रेम में संकोच और दूसरे से पहल की अपेक्षा रिश्‍तों को दीमक की तरह चाटने लगता है जो तनाव, कुंठा, मनमुटाव और दुराव के रूप में सामने आता है।


आचार्यों के अनुसार, जब वासना उफान पर होता है तो संभोग के क्षण में आलिंगन, चुंबन, नखक्षत, दंतक्षत, प्रहार, सीत्‍कार आदि का कोई क्रम निर्धारित नहीं होता, बल्कि वहां केवल आनंद प्रधान हो जाता है। संभोग के क्षण में नारी को भी खुलकर पुरुष के साथ दंतक्षत, नखक्षत, चुंबन और विपरीत रति का प्रयोग करना चाहिए।

आचार्य वात्‍स्‍यायन के अनुसार, यदि नारी की वासना बेहद प्रबल हो उठी हो तो उसे चाहिए कि वह एक हाथ से पुरुष के बाल पकड़ कर, दूसरे हाथ से उसकी ठोड़ी को थाम ले और पुरुक्ष का मुख ऊपर उठा ले। उसके बाद वह उसके अधरों का पान करती रहे। अधरों के चुंबन और उसे चूसने से शराब की तरह नशा होता है और इसकी मदहोशी का आलम यह होता है कि प्रेमी जन इस दौरान अपना सुध-बुध पूरी तरह से खो देते हैं। अधरपान के साथ-साथ नारी पुरुष से लिपटती चली जाए जैसे वह उसके शरीर में समा जाना चाहती हो और धीरे-धीरे अपने हाथ को ढीला करते हुए अपने नाखुन पुरुष की पीठ में गड़ाती चली जाए।

प्रेम की पीड़ा में बेसुध हुई प्रेयसी एक हाथ उसके गले में डालकर, दूसरे को उसकी ठोड़ी पर लगाए और उसका मुख ऊपर उठाकर उसके होंठों को अपने दांतों के बीच भींच ले और उस पर दंत प्रहार करे। वह उसकी जिहवा को अपने मुख में भर ले और अपनी जिहवा को उसके मुख के अंदर तक ले जाए। जिहवा के चूसने का सुख ही अलग है। बीच में छेड़छाड़ करती हुई अपनी जिहवा से उसकी जिहवा पर प्रहार करे।

प्रेम के क्षण बाद में यादगार बन जाते हैं। परिजन के बीच बैठे हुए भी जब पति-पत्‍नी को अपने इस प्रेम की याद आती है तो दोनों इशारों-इशारों में लोगों के बीच ही बातें शुरू कर देते हैं। उस वक्‍त नारी सबकुछ अपनी आंखों की चपलता और अधरों की मुस्‍कुराहट से कह देती है और उनके बीच फिर से प्रेम की तीव्र उत्‍कंठा जाग जाती है। इस तरह के प्रेम से दांपत्‍य जीवन हमेशा खिला-खिला रहता है। ऐसे प्रेम शादीशुदा जीवन में एकरुपता और नीरसता उत्‍पन्‍न नहीं होने देते, जिससे एक सुखी परिवार का निर्माण होता है।



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जोश-ए-जवानी

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